बिहार के तालाबों में छुपा खजाना! Makhana Farming से किसान आखिर कैसे कमा रहे लाखों?

By: Md Sadre Alam

On: Friday, November 28, 2025 2:58 PM

makhana farming in bihar किसान खेत में
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Makhana Farming कमल के बीजों से तैयार होने वाले सफेद, मुलायम और पौष्टिक मखाने की पारंपरिक खेती है। यह बीज देखने में जितना हल्का होता है, उतना ही भारी मेहनत से पैदा होता है। कमल के तालाबों में घुटने भर कीचड़ में उतरकर किसान बीज इकट्ठा करते हैं और महीनों की मेहनत के बाद यह सुपरफूड तैयार होता है।

मखाना आज सिर्फ स्नैक नहीं, एक हेल्थ बूस्टर है। इसमें प्रोटीन, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर होते हैं। यही वजह है कि आधुनिक डाइट और आयुर्वेद दोनों जगह इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है।

Makhana Farming in Bihar का महत्व

भारत में 90% से ज्यादा उत्पादन Makhana Farming in Bihar से आता है। बिहार के दरभंगा, मधुबनी, कटिहार और सुपौल जैसे जिलों में प्राकृतिक तालाब और आद्र्र जलवायु मखाना उगाने के लिए बेहद उपयुक्त हैं।

COVID के बाद जब हेल्थ फूड्स की मांग बढ़ी, तो मखाना की कीमतें 800–1500 रुपये किलो तक पहुंच गईं। यही वजह है कि बिहार में यह खेती किसानों के लिए सोने की खान बन गई है।

बिहार क्यों है Makhana Farming का हब?

भौगोलिक लाभ

बिहार के उत्तरी मैदानों में मौजूद प्राकृतिक तालाबों में सालभर पानी रहता है। यही स्थिर पानी Makhana के लिए सबसे आदर्श वातावरण बनाता है।

आर्थिक फायदा

एक एकड़ में किसान 2–3 लाख रुपये तक कमा सकते हैं। यह धान की तुलना में लगभग दोगुना लाभ देता है।

GI टैग का असर

2022 में मखाना को GI Tag मिला, जिससे इसकी अंतरराष्ट्रीय पहचान और कीमत दोनों बढ़ीं। आज चीन, अमेरिका और यूरोप तक बिहारी मखाना निर्यात हो रहा है।

Makhana Farming कैसे शुरू करें? आसान स्टेप्स

1. तालाब की तैयारी

मखाना के लिए 1–2 मीटर गहरा और चिकनी मिट्टी वाला तालाब चुनें। दिसंबर–जनवरी में खरपतवार और मछलियों को हटा दें ताकि बीज सुरक्षित रहें।

2. बीज बोना

जनवरी–फरवरी में 10–15 किलो बीज प्रति एकड़ उथले पानी में बिखेरें। यह Makhana का सबसे अहम चरण है।

3. देखभाल और बढ़त

मार्च से जून तक पौधों की छंटाई, सफाई और पक्षियों से सुरक्षा करें। कमल के पत्ते फैलते हैं और धीरे-धीरे पौधे मजबूत होते जाते हैं।

फसल और कटाई का असली संघर्ष

4–5 महीने बाद बीजों से भरे काले फल तैयार होते हैं। किसान घने कीचड़ में जाकर हाथों से बीज निकालते हैं। एक किसान एक दिन में सिर्फ 10–15 किलो बीज ही इकट्ठा कर पाता है।

Makhana में यही मेहनत इसे दुनिया का सबसे प्रीमियम स्नैक बनाती है।

प्रसंस्करण की छिपी मेहनत

कटाई के बाद बीजों को धोकर धूप में सुखाया जाता है। फिर दो बार भूनना पड़ता है—पहले हल्की आंच पर, और फिर रेत में। सही तापमान मिलने पर बीज फूलकर सफेद मखाना बन जाता है।

यदि तापमान जरा भी गलत हुआ, तो मखाना कड़वा या जला हुआ बन सकता है।

स्वास्थ्य लाभ जो Makhana को आगे बढ़ाते हैं

डायबिटीज और वजन नियंत्रण

मखाना लो-ग्लाइसेमिक फूड है, इसलिए डायबिटीज मरीजों के लिए बेहतरीन माना जाता है।

हड्डियों के लिए फायदेमंद

कैल्शियम की भरपूर मात्रा इसे महिलाओं और बुजुर्गों के लिए उपयोगी बनाती है।

कम फैट और हाई प्रोटीन

100 ग्राम में 14 ग्राम प्रोटीन—जो इसे बादाम से अधिक हेल्थी और किफायती विकल्प बनाता है।

Makhana Farming in Bihar की चुनौतियाँ

• श्रमिकों की कमी
• पानी की गुणवत्ता में गिरावट
• मौसम का अनिश्चित होना
• बाजार में रेट का उतार-चढ़ाव

लेकिन सरकारी योजनाएं, ट्रेनिंग सेंटर और मखाना बोर्ड किसानों को आधुनिक तकनीक से जोड़ रहे हैं।

भविष्य: Makhana Farming का सुनहरा कल

ड्रोन मॉनिटरिंग, मछली-मखाना मिश्रित खेती और मिनी रोस्टर मशीन जैसी तकनीकें Makhana को अगले स्तर पर पहुंचा रही हैं। बिहार सरकार 2025 तक एक लाख किसानों को इस खेती से जोड़ने की योजना बना रही है।

मखाना खेती—कीचड़ से निकलता सोना

Makhana Farming सिर्फ खेती नहीं, बल्कि एक परंपरा, एक संघर्ष और एक उज्ज्वल संभावनाओं से भरा भविष्य है। बिहार में Makhana किसानों की जिंदगी बदल रही है और देश को एक सुपरफूड दे रही है।

अगर आप किसान हैं और कम लागत में ज्यादा मुनाफा चाहते हैं, तो Makhana in darbhanga आपकी जिंदगी बदल सकती है।

Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी केवल शैक्षिक और सामान्य जागरूकता के उद्देश्य से है। किसी भी प्रकार की खेती शुरू करने से पहले स्थानीय विशेषज्ञ या कृषि विभाग से सलाह जरूर लें।

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Md Sadre Alam

Md Sadre Alam एक प्रोफेशनल कंटेंट राइटर हैं, जिन्हें सभी विषयों पर SEO फ्रेंडली और यूनिक आर्टिकल लिखने का 1 साल का अनुभव है। ये हर टॉपिक पर जानकारीपूर्ण, आकर्षक और ह्यूमन टोन में कंटेंट तैयार करते हैं।
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